लघुकथा:-गुरुदक्षिणा
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अरुण रोज की तरह आज भी कक्षा की पहली पंक्ति में बैठा सरकारी स्कूल में पढने वाले और बच्चों की तरह , गणित के मास्साब शर्मा जी का इंतज़ार कर रहा है कि कब गुरू जी की तबियत ठीक होगी और उनका कोर्स ख़त्म होगा । बोर्ड की परीक्षायें सिर पर आ खड़ी हुईं थी । उससे पिछले अध्ध्याय के कठिन सवाल हल नहीं हो पा रहे हैं । उधर मास्साब अपने घर में मेडिकल लीव लेकर प्राइवेट ट्यूशन ले रहे हैं । आज महीने की पहली तारीख हैं इधर सरकारी तनख्वाह उनके बैंक के खाते में पहुँचेगी उधर ट्यूशन पढ़ने आने वालों से मिलने वाली गुरु दक्षिणा ,गुरु जी के दोनों हाथों में लड्डू और सिर कड़ाई में । वाह रे सिस्टम ।
अरुण रोज की तरह आज भी कक्षा की पहली पंक्ति में बैठा सरकारी स्कूल में पढने वाले और बच्चों की तरह , गणित के मास्साब शर्मा जी का इंतज़ार कर रहा है कि कब गुरू जी की तबियत ठीक होगी और उनका कोर्स ख़त्म होगा । बोर्ड की परीक्षायें सिर पर आ खड़ी हुईं थी । उससे पिछले अध्ध्याय के कठिन सवाल हल नहीं हो पा रहे हैं । उधर मास्साब अपने घर में मेडिकल लीव लेकर प्राइवेट ट्यूशन ले रहे हैं । आज महीने की पहली तारीख हैं इधर सरकारी तनख्वाह उनके बैंक के खाते में पहुँचेगी उधर ट्यूशन पढ़ने आने वालों से मिलने वाली गुरु दक्षिणा ,गुरु जी के दोनों हाथों में लड्डू और सिर कड़ाई में । वाह रे सिस्टम ।
(पंकजजोशी) सर्वाधिकारसुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
२२/०१/२०१५
लखनऊ । उ०प्र०
२२/०१/२०१५
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