Wednesday 14 January 2015

लघुकथा :-नास्तिक
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सुमन एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है। बचपन से ही वह आस्तिक थी।हर कार्य को करने से पहले अपने कृष्ण कन्हैया की मूर्ति के सामने दो पर्ची डाल देती एक हाँ की और एक ना वाली और मन ही मन उनसे प्रार्थना करती कि हे मेरे कान्हा अगर यह कार्य मेरे लिये उत्तम और उचित हो तो हाँ वाली पर्ची ही मुझसे निकलवाना और उसे हमेशा ही , जो पर्ची वह निकाल कर खोलती तो वह हाँ की ही होती,बचपन से आज तक उसे अपने कान्हा से मन चाही मुरादे प्राप्त होती आईं थी । आज सुमन अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव मे है मगर अब वह अपने लड्डू गोपाल से प्रश्न नहीं पूछती कोई समाधान नही मांगती। अब उसका कन्हैया उसके लिये निष्ठुर हो गया है । कारण, कारण बहुत ही साधारण है कि कुछ वर्ष पूर्व उसके बेटे का एक्सिडेंट हो गया था। और वह हस्पताल में ज़िन्दगी और मौत के लिए संघर्ष कर रहा था। एक माँ का दिल ही तो था क्या गलत किया था उसने अगर प्रश्न पूछने के लिए दो पर्ची उसने अपने कान्हा के चरणों में डालते हुए बस इतना ही तो पूछा था कि उसके लाड़ले की जान बचेगी या नहीं , बस यहीं पर उसकी सारी तपस्या भंग हो गयी । उसका अपने कान्हा के प्रति प्रेम नफरत मे बदल गया। क्योंकि इस बार उसके द्वारा डाली गयी पर्ची में हर बार की तरह हाँ की नहीं निकली , इस बार उसके कान्हा का उत्तर ना था। उसका बेटा इस दुनिया को छोड़ कर जा चुका था। वह दिन और आज का दिन सुमन के घर में अब उसके प्यारे कृष्ण कन्हैया की मूर्ति नहीं है , उसके मन का मंदिर आहत और वीरान हो चला है ।पर्ची सिस्टम अब पूर्णतः बंद हो चुका है। क्या सुमन की आस्था और विश्वास की दीवार इतनी कमजोर थी कि एक दुःख का झटका लगने मात्र से ही वह भरभरा कर गिर गयी। एक ठेस ने उसे आस्तिक से नास्तिक बना दिया । क्या उसे भगवान से हमेशा हाँ का ही उत्तर मिलना जरूरी था ? क्या उसका अपने कान्हा के प्रति प्रेम में कुछ कमी थी ? या भक्त वत्सल कान्हा द्वारा ली , अपने भक्त के प्रति समर्पण की परीक्षा थी यह ।
(पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ। उ०प्र०
१३/०१/२०१५

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