Saturday 10 January 2015

मजबूरी


अनन्या एक जमींदार घराने की लडकी थी। बचपन में ही उसके माता-पिता की एक कार दुर्धटना में मृत्यु हो गयी थी अब उसका परिवार कहने के नाम पर सिर्फ इकलौता बडा भाई ,जो उससे दस साल बडा था , व भाभी ही थे । आज का दिन उसके लिये अति महत्वपूर्ण था , उसको आगे सी० ए० बनना था,और किस्मत से उसके अच्छे नम्बर भी आये थे,वह इस खुशखबरी को छिपा नही पा रही थी और बड़े उत्साह के साथ घर भागते भागते अपने भाई और भाभी को अपना रिजल्ट यह सोचते हुए चली आ रही थी कि उसकी इस कामयाबी के बारे मे सुन कर उसके घर वाले खुश होंगे और उसको सर आँखों मे लिया जाएगा ,गरीबों मे उसके नाम मिठाई बांटी जायेगी,पर घर पहुँचते ही सब कुछ बदला सा माहौल पाते ही अपने सपनो को चकनाचूर होते वह महसूस करती है, आज भाई ने उसकी शादी तय करने के लिए शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायिक घराने को अपनी बहन को दिखाने के लिए बुलाया था, अगर इस रिश्ते के लिए अनन्या हाँ कर देती है तो उसके भाई को काफी लाभ होगा ,घर पहुँचते ही उसे भाई ने अपने पास बैठाया और लड़के वालों से उसका परिचय करवाया, लड़के-लड़की के एकांत बातचीत से उसे लड़के के मानसिक रूप से विक्षिप्त होने का आभास होता है और वह भरी सभा मे इस रिश्ते को एक सिरे से नकार देती है ,इनकार कर देती है, और उठ कर अपने कमरे चली आती है, पीछे पीछे उसके भाई व भाभी भी उसे समझाने के वास्ते उसके कमरे के अंदर चले आते है,पर वह साफ़ शब्दों मे उस मंदबुद्धि के साथ विवाह करने को मना कर देती है ,यह कहते हुए कि वह उनके ऊपर बोझ नहीं है और इस जायदाद मे उसका भी बराबरी का हिस्सा है और वह उन लोगों के फायदे की खातिर अपनी ज़िन्दगी को बलि नहीं होने देगी,तैश मे आकर के उसका भाई उसको धमकी देते हुए कहता है कि अगर वह इस शादी से इनकार करेगी तो उसे इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है , यह शब्द अनन्य के लिए किसी सदमे से कम नहीं थे ,कमरे से उनके चले जाने के बाद अनन्या का दिमाग अब उसे यह सोचने को मज़बूर करता है कि वह उस मंदबुद्धि के साथ शादी करके अपनी ज़िन्दगी उनके नाम तमाम कर दे या आगे अपनी मंज़िल और जिंदगी का निर्माण वह स्वयं करे इसी उहापोह मे वह बिस्तर पर लेटी कमरे की छत की दीवारों की ओर ताकती है तभी उसको अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनाई पड़ती है जो उसको आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करती है अब तक वह दृण निश्चय कर चुकी होती है और वह अपना बैग पैक कर रात्रि पहर जब सब गहरी नींद के आगोश मे होते है तो वह चुपचाप एक पत्र अपने भाई के नाम लिख कर कि उसको जायदाद की लालसा नहीं है और वह अब बालिग़ है और अपना भला बुरा वह अच्छी तरह से समझती है ,घर छोड़ देती है एक नई सुबह नए सफर और उज्जवल भविष्य की तलाश में।

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(पकंज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ ,उ०प्र०
०४/०१/२०१५ रात्रि ११:४०
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