Saturday 10 January 2015

बँटवारा


रमा आज बेसुध,निढाल सी बिस्तर पर पडी थी, सुबह होने को आयी थी और वह अब भी तकिये पर औंधे मुंह पडी थी,आँखें रोते रोते सूज गई थी। कल तक घर में चहचहाने वाली रमा आज अपने सूने पडे घर में अकेली रह गई थी, कल तक भरे पूरे परिवार की मालकिन की सुध लेने वाला कोई भी नही था, आज वह अपने ही घर में गैर हो गई थी , अब वक्त उसका इस घर से सदा से रुखसती का था क्योंकि कोर्ट का आर्डर जो उसे मिला ,अब तलाक के बाद वह अपने दो बेटों में से किसी एक को चुनना था, किसी एक की परवरिश का अधिकार उसे मिला था , किसी एक की ही परवरिश कर सकती थी।क्या उसकी महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल थी कि उसके तलाक ने ना केवल दो परिवारों को ही बांट दिया बल्कि दो मासूमों के दिलों के बीच सदा के लिये एक लकीर खींच दी।
(पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित

२६/१२/२०१४

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