Saturday 21 February 2015

लघुकथा :- कुँवारी  माँ
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रमा का इस दुनिया में कोई नहीं था , माँ-बाप छोटी उम्र में ही स्वर्ग सिधार गये थे। एकाकी जीवन काटे ना कटता, घर जाकर इतनी जल्दी क्या करुँगी ?

ऑफिस से छूट कर वह पास के ही पार्क की बेंच पर बैठी सोच ही रही थी कि तभी एक बच्चे के करुण शब्दों को सुनकर उसकी तन्द्रा टूटी " बीबी जी एक रुपया दे दो , दो दिन से कुछ नहीं खाया है "
पलट कर देखती है तो गोल मटोल खूबसूरत गोरा चिट्टा बच्चा उसकी साड़ी के पल्लू को खींच कर भीख मांग रहा था ।
उसने बच्चे के नन्हे हाथों को पकड़ अपने पास बैंच पर बैठाया और पर्स से चॉकलेट निकाल उसका रेपर खोल बच्चे को खाने को दी और उसे खाता देख मन ही मन प्रसन्न हो रही थी ।
तुम कहाँ से आये हो , तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है ? बच्चा चॉकलेट छोड़ रुआंसे मन से उसका चेहरा देखने लगा। रमा को समझते देर नहीं लगी कि वह भी उसी की तरह अनाथ है ।
पढ़ोगे , स्कूल जाओगे और बच्चों की तरह मासूम चुपचाप चॉकलेट खाता रहा । केवल सिर हिला कर हामी भर दी ।
मेरे साथ घर चलोगे बच्चे के आँखें ख़ुशी से चमक उठी। ठीक है तो फिर आज से मैं तुम्हारी माँ हूँ ।

मुझे माँ कहोगे ना.........कह कर उसने बच्चे को गले से लगा लिया

(पंकज जोशी) सर्वाधिकारसुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
21/02/2015


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