लघुकथा :- धोखा पार्ट (3)
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चौदह साल की उम्र और
चौदहवीं का चाँद थी वह। चौधरी साहब की कोठी मे वह पहली बार उनके जन्मदिन के अवसर
पर अपने बाप के साथ गई थी जो चौधरी के वहां खानसामा था ।
पहली ही नजर में कच्ची कली पैंसठ वर्षीय विधुर,निःसंतान चौधरी को भा गई थी। उम्र के आखिरी पड़ाव पर उनके अंदर जीनत को अपनी दुल्हन बनाने की लालसा बलवती होने लगी थी ।
आखिर वह समय आ गया जब जीनत और चौधरी की शादी हो गई। और सुहाग रात के दिन ही
चौधरी साहब को दिल का दौरा पड़ा और वह जन्नत नसीन हो गए ।
अब उनकी जगह जीनत और खानसामा बाप उस कोठी के मालिक थे । सही भी है ऊपर वाला जब
भी देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है ।
(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
01/03/2015
लखनऊ । उ०प्र०
01/03/2015
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