लघुकथा :- अस्तित्व
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बचपन से ही माँ की तबियत खराब होने के कारण बूढ़े दादा-दादी , पिता व भाइयों की सेवा और बड़े होंने पर शादी और शादी के बाद ससुराल की
जिम्मेदारियों ने अकस्मात ही सिमरन के चेहरे पर झुर्रियाँ ला दी थी ।
वह
आगे पढ़ना चाहती थी पर सास ससुर के रूढ़ि वादी विचारों के आगे वह नतमस्तक हो गयी थी
।
आज
उसके बच्चे बड़े हो चुके हैं और सब ठीक- ठाक अपनी-अपनी गृहस्थी में रमे हुयें हैं ।
सिमरन
ने आज बी०ए० में दाखिला ले लिया है । और इस बार उसके पति भी साथ हैं अपनी पत्नी के
अस्तित्व की खातिर ।
( पंकज जोशी) सर्वाधिकारसुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
19/02/2015
लखनऊ । उ०प्र०
19/02/2015
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