दीवार – मिलन- 2-
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आज अरुण के गले से कौर नहीं उतर रहा था । जब से उसने अपने
बड़े भाई के गले में कैंसर के बारे में सुना तब से उससे वह बैचेन है । अनमने मन से
उसने थाली को किनारे खिसका दिया ।
“ हाँ खाने का मन तो मेरा भी नहीं है ऐसी मनहूस खबर सुनने
के बाद किसको भूख है । “ अजी , क्यों ना हम भाईसाहब को शहर ले आयें । अरे तूने तो मेरे मन की बात कह दी ।
प्रकृति का भी अजीब खेल है I कल तक जिन दो भाईयों के बीच जायदाद को लेकर
रिश्तों में खराशें आ गई थीं I
बरबस ही एक दूसरे की ओर मदद को बढ़ते हाथ, आज एक दूसरे का
सहारा बन रहे हैं I दोनों के बीच अहं , दंभ के मसालों से चुनी हुई दीवार आँखों से गिरते पश्चाताप के आंसुओ के
सैलाब में , गोते लगाती हुई, कही दूर
बही जा रही थी I
" आखिर खून उबाल जो ले रहा है "
( पंकज जोशी )
सर्वाधिकार सुरक्षित I
लखनऊ I उ.प्र I
29 / 04 / 2015
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