" सुनो जी आज से अपने भैय्या से कह देना कि मुझसे रौब से खाना पीना मत माँगा करें । मेरी शादी तुम्हारे संग हुई है तुम्हारे घर वालों के साथ नहीं ! "
" पर उमा मैं यह कह सकता हूँ भाभी को गये अभी महीना भर नहीं हुआ है ऊपर से बिट्टू भी तो छोटा ही है क्यों तुम बच्चे को स्वयं अपना लेती । "
" मैंने दुनिया जहाँ का ठेका नहीं ले रखा सोमेश कल मैं अपने माँ के घर चली जाऊँगी जब तुम्हारे भैय्या का इंतजाम हो जाये तो मुझे बुला लेना "
पर ऐसी निष्ठुर तुम कैसी हो सकती हो तुम भी तो एक स्त्री हो ।
तभी उन्हें पीछे से बड़े भैय्या की आवाज सुनाई पड़ी - बहू ! तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं मैं कोई ना कोई इंतेजाम कर लूँगा भाग्य की मार के आगे तुम्हारे वचन फिर भी अच्छे हैं ।
( पंकज जोशी )सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
13/10/2015
No comments:
Post a Comment