Tuesday 13 September 2016

प्रकृति

"अहा , कितना सुंदर दृश्य है चांदनी रात में कैसी मनोरम छटा छाई हुई है । ओह तुम आ गये ? वह बोली 
"कैसे ना आता आधी रात बीतने को आई है लगता है घर के सभी लोग सो गये हैं तुम क्यों नहीं सोई अभी तक कैसे सो सकती थी बिना तुम्हें कुछ खिलाये हुए तुमने भी अभी कुछ नहीं खाया होगा चलो साथ खाते हैं।उसने जोर देते हुए कहा।
प्रकृति ने जैसे ही उठने के लिये अपने सिर पर घूंघट काढ़ने के लिये मुख उठाया ,

 "अप्रतिम! हो तुम । हा आज इस चांदनी रात में तुम चाँद से भी अधिक सुंदर लग रही । इतने वर्ष हो गये हमारे विवाह के पर घर गृहस्थी , ज़िन्दगी की भाग दौड़ ने कभी अवसर ही नहीं मिला एक पल साथ में गुजारने का।"

कहते हुए पुरुष ने प्रकृति को अपने अंको में समेट लिया । चुम्बनों के बीच बहते अश्रुओ की धारा ने पुरुष के पाषाण हृदय में प्रेम के सुवासित फूल खिला दिये थे ।

( पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०