" साला, हरामखोर ", वह बुदबुदाया , कौन किसकी बातें कर रहे हो ? पत्नी ने झेंपते हुए चारों ओर अपनी नजरें घुमाते हुए पति से पूछा ।
"अरे और कौन वही - सामने देख उसको , नीली शर्ट ,घुँघराले बाल वाले को - कभी दो वक्त की रोटी के लिये तरसता था आज बैठा है इस महंगे होटल में........."
'हूँ, सुड़प सुड़प चम्मच से सूप पीती हुई अनजान बनते हुए बोली तुम भी क्या , कभी भी कहीं भी शुरू हो जाते हो.......
क्या कभी भी कहीं भी-एक नम्बर का घूसखोर , लुच्चा, घटिया इंसान है वो, मक्कारी उसकी रगो में कूट कूट कर भरी हुई है - तुम इतना कुछ उसके बारे कैसे जानते हो ? " पत्नी ने तुरन्त प्रश्नवाचक चिन्ह उसकी ओर दागा ।
"क्यों ना जानूँगा उसके बारें में मैं , मेरा जूनियर था वो कभी , धंधे की एक एक बारीकियाँ सिखाईं हैं मैंने उसे ......'
सुड़प सुड़प सूप को पीते हुये वह उससे चुहल के अंदाज में बोली " ऐसा क्यों नहीं कहते कि बाप नम्बरी तो बेटा दस नम्बरी "
पत्नी के मुँह से ऐसा अप्रत्याशित कथन उसकी कल्पना के परे था , चेहरा गुस्से से लाल हो उठा , अपने थोड़ा सयंमित करते हुये बोला "चलो चलते हैं यहाँ से " कहते हुये उसने अपना पर्स खोला और कुछ हरी पत्तियां मेज पर बिखेर दी ।
जीत के भाव रानी के चेहरे पर साफ़ परिलक्षित थे उसने तुरंत अपनी सीट छोड़ी और रेस्त्रां के बाहर आ खड़ी हुई राजा को आज उसी के खेल में दी पटखनी से उसके सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध हो चुके थे ।
(पंकज जोशी )सर्वाधिकार सुरक्षित
लखनऊ । उ०प्र०
२०/०४/२०१७
"अरे और कौन वही - सामने देख उसको , नीली शर्ट ,घुँघराले बाल वाले को - कभी दो वक्त की रोटी के लिये तरसता था आज बैठा है इस महंगे होटल में........."
'हूँ, सुड़प सुड़प चम्मच से सूप पीती हुई अनजान बनते हुए बोली तुम भी क्या , कभी भी कहीं भी शुरू हो जाते हो.......
क्या कभी भी कहीं भी-एक नम्बर का घूसखोर , लुच्चा, घटिया इंसान है वो, मक्कारी उसकी रगो में कूट कूट कर भरी हुई है - तुम इतना कुछ उसके बारे कैसे जानते हो ? " पत्नी ने तुरन्त प्रश्नवाचक चिन्ह उसकी ओर दागा ।
"क्यों ना जानूँगा उसके बारें में मैं , मेरा जूनियर था वो कभी , धंधे की एक एक बारीकियाँ सिखाईं हैं मैंने उसे ......'
सुड़प सुड़प सूप को पीते हुये वह उससे चुहल के अंदाज में बोली " ऐसा क्यों नहीं कहते कि बाप नम्बरी तो बेटा दस नम्बरी "
पत्नी के मुँह से ऐसा अप्रत्याशित कथन उसकी कल्पना के परे था , चेहरा गुस्से से लाल हो उठा , अपने थोड़ा सयंमित करते हुये बोला "चलो चलते हैं यहाँ से " कहते हुये उसने अपना पर्स खोला और कुछ हरी पत्तियां मेज पर बिखेर दी ।
जीत के भाव रानी के चेहरे पर साफ़ परिलक्षित थे उसने तुरंत अपनी सीट छोड़ी और रेस्त्रां के बाहर आ खड़ी हुई राजा को आज उसी के खेल में दी पटखनी से उसके सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध हो चुके थे ।
(पंकज जोशी )सर्वाधिकार सुरक्षित
लखनऊ । उ०प्र०
२०/०४/२०१७
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